इंतिहा
रविवार, 19 मई 2013
मंगलवार, 6 नवंबर 2012
रोना है
I.
रोना है उन आँखों के लिए
जो अब रोती ही नहीं
रोना है उन विचारों के लिए
जो अब हमारे नहीं
रोना है उस क्रांति के लिए जो
फ़िल्मी पर्दों में खो गयी
उस देश के लिए जिसके गरीबों का जीवन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया.
II.
रोना है उन मजदूरों के लिए
जो आज भी भूखे सो गए
उन बच्चों के लिए जो
अपाहिज भविष्य के साथ जन्में
उन औरतों के लिए जो त्यौहार पर
अपनी शादी की साड़ी रफ़ू कर रही हैं
उन किसानों के लिए जिनकी सांसें रुक चुकी हैं
महाजन के कर्जों तले.
III
रोना है उन जंगलों के लिए
जहाँ से आदिवासियों को बेदखल किया गया.
उस नदी के लिए जिसका पानी रोका गया
चंद शहरी बाबूओं की सुविधा के लिए.
रोना है उस दिल के लिए जो अब अंधा हो चला है
उस ज़ेहन के लिए जो सुन्न है, जड़ है.
रोना है उन आँखों के लिए
जो अब रोती ही नहीं
रोना है उन विचारों के लिए
जो अब हमारे नहीं
रोना है उस क्रांति के लिए जो
फ़िल्मी पर्दों में खो गयी
उस देश के लिए जिसके गरीबों का जीवन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया.
II.
रोना है उन मजदूरों के लिए
जो आज भी भूखे सो गए
उन बच्चों के लिए जो
अपाहिज भविष्य के साथ जन्में
उन औरतों के लिए जो त्यौहार पर
अपनी शादी की साड़ी रफ़ू कर रही हैं
उन किसानों के लिए जिनकी सांसें रुक चुकी हैं
महाजन के कर्जों तले.
III
रोना है उन जंगलों के लिए
जहाँ से आदिवासियों को बेदखल किया गया.
उस नदी के लिए जिसका पानी रोका गया
चंद शहरी बाबूओं की सुविधा के लिए.
रोना है उस दिल के लिए जो अब अंधा हो चला है
उस ज़ेहन के लिए जो सुन्न है, जड़ है.
रविवार, 15 जुलाई 2012
बारिश
जो प्रेमी के नाम सी
ज़बान पर चढ़ जाती है
हम उँगलियों से आसमान को टटोलते रहते हैं
कि इस दफ़ा बरसे तो पूरा आसमान पी जाएँ.
और जब टूटके गिरते हैं कांच के मोती
समूचा आसमान जैसे त्वचा में निचुड़ आता है.
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
गृहिणी करे याद
मुझे तुम्हारी याद आती है जब
शेम्पू की डिब्बी सीटी फूंकने लगती है
पतला साबुन टूट कर
मेरे हाथ में रह जाता है
जब कनिस्तर बजने लगते हैं
या सिलेंडर लेट जाता है.
शेम्पू की डिब्बी सीटी फूंकने लगती है
पतला साबुन टूट कर
मेरे हाथ में रह जाता है
जब कनिस्तर बजने लगते हैं
या सिलेंडर लेट जाता है.
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
चित्र
चित्र बनाओ, एक जटिल चित्र
युद्ध एक राक्षस है जो खादी नहीं ओढ़ता
औरतें चट्टानों पर पीट-पीट कर कमीज़ें
धोती हैं
शाम बेदम चेहरों को नील-लोहित रंग के
रेशम से ढँक देती है
कोई संगीत को अपने सर ओढ़ के आता है
(स्कार्फ़ की तरह)
सिर्फ़ तुम्हारे लिए..
युद्ध एक राक्षस है जो खादी नहीं ओढ़ता
औरतें चट्टानों पर पीट-पीट कर कमीज़ें
धोती हैं
शाम बेदम चेहरों को नील-लोहित रंग के
रेशम से ढँक देती है
कोई संगीत को अपने सर ओढ़ के आता है
(स्कार्फ़ की तरह)
सिर्फ़ तुम्हारे लिए..
रविवार, 20 नवंबर 2011
मंगलवार, 1 नवंबर 2011
सुनियो जी
रेगिस्तान में गूंजता एक
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.
वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है
लाल रंग बहता हुआ.
वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.
वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है
लाल रंग बहता हुआ.
वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.
हमेशा सबर रखने वाली औरत
उसके बहाव में,
बढ़ते ज्वर में
अपना बुर्खा चीर कर
घेरा तोड़ कर
अपनी त्वचा से बाहर निकल
हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को जिंदगी
देती है.
उसके ज्वालामुखों में,
उसके बागों में
ठोसपन और नाप को टटोलती
अपने सबसे नर्म मांस को नोचती
नाज़ुक रेशों को खींचती
हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को
धूप देती है.
बढ़ते ज्वर में
अपना बुर्खा चीर कर
घेरा तोड़ कर
अपनी त्वचा से बाहर निकल
हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को जिंदगी
देती है.
उसके ज्वालामुखों में,
उसके बागों में
ठोसपन और नाप को टटोलती
अपने सबसे नर्म मांस को नोचती
नाज़ुक रेशों को खींचती
हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को
धूप देती है.
बुधवार, 20 जुलाई 2011
प्रश्न और उत्तर
एक प्रश्न है और
उत्तर की तलाश है
कि तुम्हारी ग़ैरमौजूदगी में
ये ख़ूबसूरती
काइनात की
कहाँ खो जाती है?
उत्तर की तलाश है
कि तुम्हारी ग़ैरमौजूदगी में
ये ख़ूबसूरती
काइनात की
कहाँ खो जाती है?
शुक्रवार, 8 जुलाई 2011
इंतज़ार
एक तारे के इंतज़ार में
आकाश खोल के पढ़ते रहे
महकती रात की रानी
चांद पे पंजे मारती रही
काले लिबास में
बैठा इंतज़ार सुबकता रहा,
रास्ता भूला,
आधी रात
किसको आवाज़ दे?
आकाश खोल के पढ़ते रहे
महकती रात की रानी
चांद पे पंजे मारती रही
काले लिबास में
बैठा इंतज़ार सुबकता रहा,
रास्ता भूला,
आधी रात
किसको आवाज़ दे?
रविवार, 5 जून 2011
बुढ़ापा और तारे
ज्यों-ज्यों बुढ़ापा
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.
कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !
(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.
कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !
(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)
बुधवार, 1 जून 2011
अनकहा
कितनी जिंदगी हम भीतर ही
जिये जाते हैं.
वह ग़मगीन डायरियां,
वह तालू से लिपटा दर्द
अनकहा प्रेम गौण नहीं होता
उसे भी आप
समय-समय सहलाते रहते हैं.
हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.
उन पत्रों को याद करो जो
तुमने मुर्दा रिश्तों के नाम लिखे थे.
जिये जाते हैं.
वह ग़मगीन डायरियां,
वह तालू से लिपटा दर्द
अनकहा प्रेम गौण नहीं होता
उसे भी आप
समय-समय सहलाते रहते हैं.
हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.
उन पत्रों को याद करो जो
तुमने मुर्दा रिश्तों के नाम लिखे थे.
Dana Gioia 'Unsaid' का अंश.
शनिवार, 23 अप्रैल 2011
रविवार, 17 अप्रैल 2011
कविता
स्वर्णिम उदासी,
एक तलाश, एक सपना
अँधेरा, कुछ आंसू
आस और हिचकी.
बीते ग्रीष्म के
झुलसे-सूखे फूलों
को संजोना
यही है कविता.
एक तलाश, एक सपना
अँधेरा, कुछ आंसू
आस और हिचकी.
बीते ग्रीष्म के
झुलसे-सूखे फूलों
को संजोना
यही है कविता.
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