शनिवार, 14 अगस्त 2010

आम आदमी - जो लोकसभा में बेहद आम है !

दफ़ाओं से लदा हुआ
"आम आदमी" कितनी दफा
उछलता है उन लाल या हरे
कालीन की महफिलों में .

इधर उसका अर्क़ निकाल के
पक्ष उसे लट्टू जैसे फर्श
पे फेंकता है ,
वहां से विपक्ष का
हाथ आकर उसे अपनी
हथेली पे रख लेता है .
घंटो उससे मनोरंजन होता
है और
हंसी ठट्ठा, मौज ,तमाशा !

कुछ देर बाद ऊब के
दोनों पार्टियां उठती हैं ,
उनके छोटे मोटे समर्थक
दल भी घुटनों पे हाथ रख
खड़े होते हैं ..

टाटा कहते हुए
फिर उसी जगह , वही
खेल खेलना का वादा लिए
अपने अपने घर को हो लेते हैं !

*जब भी आज़ाद या आजादी जैसे शब्द कानों में गूंजते हैं , सवाल आता है उस आम इंसान का जिसे पकड़ कर सरकार खड़ी होती है , जिसके घर की छतों से आज भी बारिश में ढेरों पानी आता है , जिसके यहाँ  बच्चे स्कूल की बजाये माँ बाप के पेशे हाथो में उठा लेते हैं , जो सूखे और बाढ़ के मारे हैं , जो हर चुनाव में अपने लिए एक सही पार्टी के जनम की आशा रखता ..पर हर बार गर्भ में धोखे को पलता पाता है .

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