इंतिहा
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012
गुमना
कभी
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कभी यूँ गुमना होता है कि
जगह पता नहीं होती
,
पहर पता नहीं होता
कानों में पड़ते गीत की धुन पता नहीं होती
मैं होती हूँ दिन और रात ढोए
एक सूखे पत्ते की तरह
..
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