मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

गृहिणी करे याद

मुझे तुम्हारी याद आती है जब


शेम्पू की डिब्बी सीटी फूंकने लगती है
पतला साबुन टूट कर
मेरे हाथ में रह जाता है


जब कनिस्तर बजने लगते हैं
या सिलेंडर लेट जाता है.

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

चित्र

चित्र बनाओ, एक जटिल चित्र

युद्ध एक राक्षस है जो खादी नहीं ओढ़ता

औरतें चट्टानों पर पीट-पीट कर कमीज़ें
धोती हैं

शाम बेदम चेहरों को नील-लोहित रंग के
रेशम से ढँक देती है

कोई संगीत को अपने सर ओढ़ के आता है
(स्कार्फ़ की तरह)
सिर्फ़ तुम्हारे लिए..

रविवार, 20 नवंबर 2011

खतों में

अपने खतों में रखना तुम,
कुछ पीलापन सरसों का.

कुछ बूँदें हाल के सावन की,
कुछ खिलखिलाहट आस-पास खेलते बच्चों की.

रखना हल्की लाली सिन्दूर की भी,
और चेहरे की कुछ लकीरें.







मंगलवार, 1 नवंबर 2011

सुनियो जी

रेगिस्तान में गूंजता एक
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.

वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है

लाल रंग बहता हुआ.

वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.



हमेशा सबर रखने वाली औरत

उसके बहाव में,
बढ़ते ज्वर में
अपना बुर्खा चीर कर
घेरा तोड़ कर
अपनी त्वचा से बाहर निकल

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को जिंदगी
देती है.

उसके ज्वालामुखों में,
उसके बागों में
ठोसपन और नाप को टटोलती
अपने सबसे नर्म मांस को नोचती
नाज़ुक रेशों को खींचती

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को
धूप देती है.





बुधवार, 20 जुलाई 2011

प्रश्न और उत्तर

एक प्रश्न है और
उत्तर की तलाश है

कि तुम्हारी ग़ैरमौजूदगी में
ये ख़ूबसूरती
काइनात की
कहाँ खो जाती है?

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

इंतज़ार

एक तारे के इंतज़ार में
आकाश खोल के पढ़ते रहे

महकती रात की रानी
चांद पे पंजे मारती रही

काले लिबास में
बैठा इंतज़ार सुबकता रहा,
रास्ता भूला,
आधी रात
किसको आवाज़ दे?




रविवार, 5 जून 2011

बुढ़ापा और तारे

ज्यों-ज्यों बुढ़ापा
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.

कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !


(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)





बुधवार, 1 जून 2011

अनकहा

कितनी जिंदगी हम भीतर ही
जिये जाते हैं.
वह ग़मगीन डायरियां,
वह तालू से लिपटा दर्द

अनकहा प्रेम गौण नहीं होता
उसे भी आप
समय-समय सहलाते हैं.

हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.

उन पत्रों को याद करो जो
तुमने मुर्दा रिश्तों के नाम लिखे थे.


Dana Gioia 'Unsaid' का अंश.


शनिवार, 23 अप्रैल 2011

खिड़की में खो जाता है

दिखते-दिखते सब उस खिड़की में खो जाता है.
सुबह, शाम, तारे, आकाश.

कुछ परवाज़ें,
कुछ खुरशीद जो सहमे और ज़र्द उगे थे
इन जाड़ों में.

दिखते-दिखते सब . .


रविवार, 17 अप्रैल 2011

कविता








 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
स्वर्णिम उदासी,

एक तलाश, एक सपना

अँधेरा, कुछ आंसू

आस और हिचकी.


बीते ग्रीष्म के

झुलसे-सूखे फूलों

को संजोना

यही है कविता.

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

उसके बाद

मैं सूरज की पहली 
किरण के साथ उठी 
और उसके बाद . .
धीरे-धीरे रात की 
ओर कदम बढाए.


मैंने कुछ धोखे किये,
और उसके बाद . .
अपनी बीमार रूह को 
उपचार से दूर रखा.


मैंने 'आज' को 
नज़रअंदाज़ किया,
कमर तक स्मृतियों में 
डूबी थी मैं.


Nate Pritts की "And then Afterward" से प्रेरित.


शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

खूबसूरत नहीं

तुम्हारे पास हूँ,
तुम्हें छू सकती हूँ,
पर ये उतना खूबसूरत नहीं;
जितना खूबसूरत

तुम्हें पाने का ख्वाब था.


गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

बयार मिस्त्र की

पयामी हवा है,
पंखो पे रखके
सन्देश, बदलाव
इस मारुथल से उस
मारुथल . .
एक आंधी उठाएगी.

कठपुतलियों के धागे टूटेंगे
बगावत का मंच सजेगा.
कुछ तो बदलेगा !



शनिवार, 29 जनवरी 2011

काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले !

ना मुल्क की खबर
ना जुबां की सरहद.
उसका गली में आना
और इधर मिनी का चिल्लाना-
काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले.
सूखा मेवा, नम जज़्बात
सालों दो शिकम
की खुराक बने रहे !
 



शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

मीना कुमारी

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
वो रहती थी,
वो ज़िंदा थी.
महफिलों में,
परदे पर,
गर कुछ उसकी आँखों
में चमकता तो वो 
होता गम का बादल . .
मानो झूल ही रहा हो
कोर पे आके,
और अंधेरों की
तरफ इशारा करता
बोल रहा हो-
ज़रा ओट में हो लो,
बरसने को हूँ मैं !



लिखा था कभी उन्होनें -
"न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
  बड़े क़रीब से उठकर चला गया कोई "

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