ज्यों-ज्यों बुढ़ापा
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.
कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !
(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.
कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !
(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)
6 टिप्पणियां:
जीवन का सत्य्।
जीवन का बहुत सार्थक चित्र उकेरा है..
बहुत बढ़िया ..आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
शुक्रिया आप सब का.
और संजय जी, आपने इस मीठे अनुभव को बयान किया. अच्छा लगा !
आपके वचन मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं.
आभार !
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