रविवार, 5 जून 2011

बुढ़ापा और तारे

ज्यों-ज्यों बुढ़ापा
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.

कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !


(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)





6 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

जीवन का सत्य्।

Kailash Sharma ने कहा…

जीवन का बहुत सार्थक चित्र उकेरा है..

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया ..आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

संजय भास्‍कर ने कहा…

पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

संजय भास्‍कर ने कहा…

पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA ने कहा…

शुक्रिया आप सब का.
और संजय जी, आपने इस मीठे अनुभव को बयान किया. अच्छा लगा !
आपके वचन मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं.
आभार !

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