मंगलवार, 6 नवंबर 2012

रोना है

I.
रोना है उन आँखों के लिए
जो अब रोती ही नहीं

रोना है उन विचारों के लिए
जो  अब हमारे नहीं

रोना है उस क्रांति के लिए जो
फ़िल्मी पर्दों में खो गयी

उस देश के लिए जिसके गरीबों  का जीवन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया.

II.
रोना है उन मजदूरों के लिए
जो आज भी भूखे सो गए

उन बच्चों के लिए जो
अपाहिज भविष्य के साथ जन्में

उन औरतों के लिए जो त्यौहार पर
अपनी शादी की साड़ी रफ़ू कर रही हैं

उन  किसानों के लिए जिनकी  सांसें रुक चुकी हैं
महाजन  के कर्जों तले.

III
रोना  है उन जंगलों के लिए
जहाँ से आदिवासियों को बेदखल किया गया.

उस  नदी के लिए जिसका पानी रोका गया
चंद शहरी बाबूओं की सुविधा के लिए.

रोना है उस दिल के लिए जो अब अंधा हो चला है
उस ज़ेहन  के लिए जो सुन्न है, जड़ है.





रविवार, 15 जुलाई 2012

बारिश

जो प्रेमी के नाम सी
ज़बान पर चढ़ जाती है

हम उँगलियों से आसमान को टटोलते रहते हैं
कि इस दफ़ा बरसे तो पूरा आसमान पी जाएँ.

और जब टूटके गिरते हैं कांच के मोती
समूचा आसमान जैसे त्वचा में निचुड़ आता है. 




शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

गुमना


 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कभी-कभी यूँ गुमना होता है कि
जगह पता नहीं होती,  
पहर पता नहीं होता
कानों में पड़ते गीत की धुन पता नहीं होती
मैं होती हूँ दिन और रात ढोए
एक सूखे पत्ते की तरह..


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