रविवार, 20 नवंबर 2011

खतों में

अपने खतों में रखना तुम,
कुछ पीलापन सरसों का.

कुछ बूँदें हाल के सावन की,
कुछ खिलखिलाहट आस-पास खेलते बच्चों की.

रखना हल्की लाली सिन्दूर की भी,
और चेहरे की कुछ लकीरें.







मंगलवार, 1 नवंबर 2011

सुनियो जी

रेगिस्तान में गूंजता एक
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.

वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है

लाल रंग बहता हुआ.

वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.



हमेशा सबर रखने वाली औरत

उसके बहाव में,
बढ़ते ज्वर में
अपना बुर्खा चीर कर
घेरा तोड़ कर
अपनी त्वचा से बाहर निकल

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को जिंदगी
देती है.

उसके ज्वालामुखों में,
उसके बागों में
ठोसपन और नाप को टटोलती
अपने सबसे नर्म मांस को नोचती
नाज़ुक रेशों को खींचती

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को
धूप देती है.





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