मंगलवार, 1 नवंबर 2011

सुनियो जी

रेगिस्तान में गूंजता एक
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.

वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है

लाल रंग बहता हुआ.

वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.



6 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut khoob

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत बढि़या ।

Nandita ने कहा…

Lovely work !! :)

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

खूबसूरत कविता... गीत भी... आप बढ़िया लिखती हैं.. डूब कर...

'साहिल' ने कहा…

वाह वाह! उम्दा रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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