रेगिस्तान में गूंजता एक
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.
वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है
लाल रंग बहता हुआ.
वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.
बंजारा गीत
और ठंडी रेत.
वह शाम खरोंच कर
एक तस्वीर बनाती है
लाल रंग बहता हुआ.
वह
काली रात,
घूँघट तले
घुट-घुट मर जाती है.
6 टिप्पणियां:
bahut khoob
वाह ...बहुत बढि़या ।
Lovely work !! :)
खूबसूरत कविता... गीत भी... आप बढ़िया लिखती हैं.. डूब कर...
वाह वाह! उम्दा रचना
अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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