शनिवार, 23 अप्रैल 2011

खिड़की में खो जाता है

दिखते-दिखते सब उस खिड़की में खो जाता है.
सुबह, शाम, तारे, आकाश.

कुछ परवाज़ें,
कुछ खुरशीद जो सहमे और ज़र्द उगे थे
इन जाड़ों में.

दिखते-दिखते सब . .


रविवार, 17 अप्रैल 2011

कविता








 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
स्वर्णिम उदासी,

एक तलाश, एक सपना

अँधेरा, कुछ आंसू

आस और हिचकी.


बीते ग्रीष्म के

झुलसे-सूखे फूलों

को संजोना

यही है कविता.

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

उसके बाद

मैं सूरज की पहली 
किरण के साथ उठी 
और उसके बाद . .
धीरे-धीरे रात की 
ओर कदम बढाए.


मैंने कुछ धोखे किये,
और उसके बाद . .
अपनी बीमार रूह को 
उपचार से दूर रखा.


मैंने 'आज' को 
नज़रअंदाज़ किया,
कमर तक स्मृतियों में 
डूबी थी मैं.


Nate Pritts की "And then Afterward" से प्रेरित.


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