बुधवार, 22 दिसंबर 2010
मुंबई हो या बॉम्बे- खूबसूरत है !
बड़ा खूबसूरत शहर है,
जहाँ आसमान रात,
ज़मी पर लोटता है !
लहरों पे रात-दिन
कश्तियाँ मदमदाती
रहती हैं !
मटमैली रोशनी में
सरसराते पत्ते
लम्बा, मीठा इतिहास
गुनगुनाते हैं.
और हर चौराहे पे
लगा वो स्लेटी पुतला
घूरता रहता है
आते जाते जल्दबाज़
मुंबईयो को.
ए दिल है आसां जीना यहाँ सुनो मिस्टर सुनो बन्धु ये है मुंबई मेरी जान :)
मुंबई हो या बॉम्बे- खूबसूरत है !
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
लोग क्या याद रखते हैं ?
लोग क्या याद रखते हैं ?
एक अजनबी जगह पर
कुछ नरमी भरे
अजनबी एहसास !
या एक रोज़ कि वो
भूख जो आप को
सेंक सेंक के खा रही थी !
या एक पहाड़ की
सांसें जो अन्दर भरी
थीं तो लगा था
जिंदगी का पता !
या फिर एक साथ ,
जो कभी आप में सिल
जाता है या कभी उधड़ !
पर जानते हो ये भी -
वो था,
वो है ,
और वो रहेगा सदा!
शनिवार, 14 अगस्त 2010
आम आदमी - जो लोकसभा में बेहद आम है !
दफ़ाओं से लदा हुआ
"आम आदमी" कितनी दफा
उछलता है उन लाल या हरे
कालीन की महफिलों में .
इधर उसका अर्क़ निकाल के
पक्ष उसे लट्टू जैसे फर्श
पे फेंकता है ,
वहां से विपक्ष का
हाथ आकर उसे अपनी
हथेली पे रख लेता है .
घंटो उससे मनोरंजन होता
है और
हंसी ठट्ठा, मौज ,तमाशा !
कुछ देर बाद ऊब के
दोनों पार्टियां उठती हैं ,
उनके छोटे मोटे समर्थक
दल भी घुटनों पे हाथ रख
खड़े होते हैं ..
टाटा कहते हुए
फिर उसी जगह , वही
खेल खेलना का वादा लिए
अपने अपने घर को हो लेते हैं !
*जब भी आज़ाद या आजादी जैसे शब्द कानों में गूंजते हैं , सवाल आता है उस आम इंसान का जिसे पकड़ कर सरकार खड़ी होती है , जिसके घर की छतों से आज भी बारिश में ढेरों पानी आता है , जिसके यहाँ बच्चे स्कूल की बजाये माँ बाप के पेशे हाथो में उठा लेते हैं , जो सूखे और बाढ़ के मारे हैं , जो हर चुनाव में अपने लिए एक सही पार्टी के जनम की आशा रखता ..पर हर बार गर्भ में धोखे को पलता पाता है .
"आम आदमी" कितनी दफा
उछलता है उन लाल या हरे
कालीन की महफिलों में .
इधर उसका अर्क़ निकाल के
पक्ष उसे लट्टू जैसे फर्श
पे फेंकता है ,
वहां से विपक्ष का
हाथ आकर उसे अपनी
हथेली पे रख लेता है .
घंटो उससे मनोरंजन होता
है और
हंसी ठट्ठा, मौज ,तमाशा !
कुछ देर बाद ऊब के
दोनों पार्टियां उठती हैं ,
उनके छोटे मोटे समर्थक
दल भी घुटनों पे हाथ रख
खड़े होते हैं ..
टाटा कहते हुए
फिर उसी जगह , वही
खेल खेलना का वादा लिए
अपने अपने घर को हो लेते हैं !
*जब भी आज़ाद या आजादी जैसे शब्द कानों में गूंजते हैं , सवाल आता है उस आम इंसान का जिसे पकड़ कर सरकार खड़ी होती है , जिसके घर की छतों से आज भी बारिश में ढेरों पानी आता है , जिसके यहाँ बच्चे स्कूल की बजाये माँ बाप के पेशे हाथो में उठा लेते हैं , जो सूखे और बाढ़ के मारे हैं , जो हर चुनाव में अपने लिए एक सही पार्टी के जनम की आशा रखता ..पर हर बार गर्भ में धोखे को पलता पाता है .
बुधवार, 21 जुलाई 2010
ये जगत
मद्धम मद्धम अइयो जोरे,
होले होले बोल सुनइयो
ये जगत सुनता बहुत है
तुने कही हो या न कही,
ये जगत बुनता बहुत है
होले होले बोल सुनइयो
ये जगत सुनता बहुत है
तुने कही हो या न कही,
ये जगत बुनता बहुत है
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