रविवार, 5 जून 2011

बुढ़ापा और तारे

ज्यों-ज्यों बुढ़ापा
मेरी खाट के सिरहाने बैठता,
मेरा सर दबाता . .
मैं उन शाम के सितारों की
ओर नज़र करता और
पाता कि -
मेरी मौत के साथ वो और जवान
हो रहे हैं, उनकी चमक बढ़ रही है.
लंबे दिन हो चले हैं
और रातें छोटी.

कभी तुम कुटिया आओ,
और अवगत कराओ मुझे
मेरे इस वहम से,
जो शायद सच है !


(फ्रांज़ राईट की 'इमेजो' से प्रेरित)





बुधवार, 1 जून 2011

अनकहा

कितनी जिंदगी हम भीतर ही
जिये जाते हैं.
वह ग़मगीन डायरियां,
वह तालू से लिपटा दर्द

अनकहा प्रेम गौण नहीं होता
उसे भी आप
समय-समय सहलाते हैं.

हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.

उन पत्रों को याद करो जो
तुमने मुर्दा रिश्तों के नाम लिखे थे.


Dana Gioia 'Unsaid' का अंश.


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