बुधवार, 1 जून 2011

अनकहा

कितनी जिंदगी हम भीतर ही
जिये जाते हैं.
वह ग़मगीन डायरियां,
वह तालू से लिपटा दर्द

अनकहा प्रेम गौण नहीं होता
उसे भी आप
समय-समय सहलाते हैं.

हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.

उन पत्रों को याद करो जो
तुमने मुर्दा रिश्तों के नाम लिखे थे.


Dana Gioia 'Unsaid' का अंश.


4 टिप्‍पणियां:

Nandita ने कहा…

Wow !! 'D' this is just awesome !! so many depth is exploring in every word !! "Mera Kuch saman tumhare pass para hain, sawan ke kuch bhege bhege se din rakkhe hai" :) go on !!:)

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

हम जितना छुपाने की हिम्मत कर
पाते हैं उससे कहीं ज्यादा हम
छुपाये बैठे हैं.

sach !

Rishabh ने कहा…

अब क्या कहें ... हम चक्रधर नहीं !!

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