सोमवार, 20 दिसंबर 2010

बारिश का धुंआ


घन झम बरसा,


कुछ यूँ बरसा,


कि चलते मुसाफिरों की


छतरियां बजने लगीं.


देहकी हुई हरी


पत्तियां बजने लगीं.


 


















*मौसम नहीं है, आज मन गीला गीला है :)

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