मंगलवार, 1 नवंबर 2011

हमेशा सबर रखने वाली औरत

उसके बहाव में,
बढ़ते ज्वर में
अपना बुर्खा चीर कर
घेरा तोड़ कर
अपनी त्वचा से बाहर निकल

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को जिंदगी
देती है.

उसके ज्वालामुखों में,
उसके बागों में
ठोसपन और नाप को टटोलती
अपने सबसे नर्म मांस को नोचती
नाज़ुक रेशों को खींचती

हमेशा
सबर रखने वाली औरत
हौले-हौले
खुद को
धूप देती है.





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