मंगलवार, 6 नवंबर 2012

रोना है

I.
रोना है उन आँखों के लिए
जो अब रोती ही नहीं

रोना है उन विचारों के लिए
जो  अब हमारे नहीं

रोना है उस क्रांति के लिए जो
फ़िल्मी पर्दों में खो गयी

उस देश के लिए जिसके गरीबों  का जीवन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया.

II.
रोना है उन मजदूरों के लिए
जो आज भी भूखे सो गए

उन बच्चों के लिए जो
अपाहिज भविष्य के साथ जन्में

उन औरतों के लिए जो त्यौहार पर
अपनी शादी की साड़ी रफ़ू कर रही हैं

उन  किसानों के लिए जिनकी  सांसें रुक चुकी हैं
महाजन  के कर्जों तले.

III
रोना  है उन जंगलों के लिए
जहाँ से आदिवासियों को बेदखल किया गया.

उस  नदी के लिए जिसका पानी रोका गया
चंद शहरी बाबूओं की सुविधा के लिए.

रोना है उस दिल के लिए जो अब अंधा हो चला है
उस ज़ेहन  के लिए जो सुन्न है, जड़ है.





4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…
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बेनामी ने कहा…
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बेनामी ने कहा…
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Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…


रोना है उन विचारों के लिए
जो अब हमारे नहीं…
रोना है उस क्रांति के लिए जो
फ़िल्मी पर्दों में खो गयी…
उस देश के लिए जिसके गरीबों का जीवन
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया…
उन औरतों के लिए जो त्यौहार पर
अपनी शादी की साड़ी रफ़ू कर रही है…
रोना है उस दिल के लिए जो अब अंधा हो चला है
उस ज़ेहन के लिए जो सुन्न है, जड़ है…


बेहतरीन !
कमाल की संवेदनशीलता !
वाऽह ! क्या बात है !

दीपशिखा वर्मा जी
व्यापक दृष्टिकोण से उत्पन्न भाव और ओजपूर्ण शब्द !
खूबसूरत और सार्थक रचना !
कुल मिला कर आपके लिए विशेष बधाई का अधिकार बनता है …
साधुवाद एवं आभार …

…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…

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