शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

गुमना


 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कभी-कभी यूँ गुमना होता है कि
जगह पता नहीं होती,  
पहर पता नहीं होता
कानों में पड़ते गीत की धुन पता नहीं होती
मैं होती हूँ दिन और रात ढोए
एक सूखे पत्ते की तरह..


2 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

itni bheed men aise Gumna...badi baat :)

Rishabh ने कहा…

मैं होती हूँ दिन और रात ढोए
एक सूखे पत्ते की तरह.. :)

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