शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

इंतज़ार

एक तारे के इंतज़ार में
आकाश खोल के पढ़ते रहे

महकती रात की रानी
चांद पे पंजे मारती रही

काले लिबास में
बैठा इंतज़ार सुबकता रहा,
रास्ता भूला,
आधी रात
किसको आवाज़ दे?




5 टिप्‍पणियां:

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

काले लिबास में
बैठा इंतज़ार सुबकता रहा,
इंतज़ार का मानवीकरण ..अच्छा लगा ..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi gambheer rachna gambheer bhaw

संजय भास्‍कर ने कहा…

खूबसूरत कविता...नए तरह का विम्ब...

Anupam Karn ने कहा…

काफी उम्दा प्रस्तुति!
आभार

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