चित्र बनाओ, एक जटिल चित्र
युद्ध एक राक्षस है जो खादी नहीं ओढ़ता
औरतें चट्टानों पर पीट-पीट कर कमीज़ें
धोती हैं
शाम बेदम चेहरों को नील-लोहित रंग के
रेशम से ढँक देती है
कोई संगीत को अपने सर ओढ़ के आता है
(स्कार्फ़ की तरह)
सिर्फ़ तुम्हारे लिए..
युद्ध एक राक्षस है जो खादी नहीं ओढ़ता
औरतें चट्टानों पर पीट-पीट कर कमीज़ें
धोती हैं
शाम बेदम चेहरों को नील-लोहित रंग के
रेशम से ढँक देती है
कोई संगीत को अपने सर ओढ़ के आता है
(स्कार्फ़ की तरह)
सिर्फ़ तुम्हारे लिए..
9 टिप्पणियां:
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
bahut sundar...
क्या बात है.... वाह!
सादर
umdaa
Nihayat sundar!
बहुत खूब... वाह!
सादर...
दीपशिखा जी,..आपने बहुत सुंदर रचना लिखी-बहुत खूब ..बधाई.....
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया :)
वाह ... क्या बात है ... ऐसे जीवंत चित्र बनाना आसान नहीं ...
एक टिप्पणी भेजें