शनिवार, 29 जनवरी 2011

काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले !

ना मुल्क की खबर
ना जुबां की सरहद.
उसका गली में आना
और इधर मिनी का चिल्लाना-
काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले.
सूखा मेवा, नम जज़्बात
सालों दो शिकम
की खुराक बने रहे !
 



कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts with Thumbnails